व्यंजन
मुख्य रूप से व्यंजन 4 प्रकार के होते है -
(1) स्पर्श व्यंजन
(2) अन्त्यस्थ व्यंजन
(3) ऊष्म व्यंजन
(4) संयुक्त व्यंजन
(1) स्पर्श व्यंजन = स्पर्श व्यंजनो की संख्या 25 होती हैं -
(क-वर्ग) क , ख , ग , घ , ङ
(च-वर्ग) च , छ , ज , झ , ञ
(ट-वर्ग) ट , ठ , ड , ढ , ण
(त-वर्ग) त ,थ , द , ध , न
(प-वर्ग) प , फ , ब , भ , म
(2) अन्त्यस्थ व्यंजन = इनकी संख्या 4 होती है, तथा इनको बोलने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
य , व , र , ल
(3) ऊष्म व्यंजन = इनकी संख्या 4 होती है, तथा इनको बोलने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं।
श , ष , स , ह
(4) संयुक्त व्यंजन = इनकी संख्या 4 होती है।
श्र ,क्ष , त्र , ज्ञ
श्र = श् + र
क्ष = क् + ष
त्र = त् + र
ज्ञ = ज् + ञ
(5) उत्क्षिप्त / द्विगुण व्यंजन = ड़ , ढ़
स्थान बोले जाने वाले वर्ण
1 2 3 4 5
कंठ क , ख , ग , घ , ङ ह
तालव्य च , छ , ज , झ , ञ य
मूँह ट , ठ , ड , ढ , ण र श
दन्त त , थ , द , ध , न ल ष
होंठ प , फ , ब , भ , म व स
अघोष वर्ण = 1, 2, श, ष, स
सघोष वर्ण = 3, 4, 5, य, व, र, ल, ह
अल्पप्राण = 1, 3, 5, य, व, र, ल
महाप्राण = 2, 4, श, ष, स, ह
Note:-
(1) ह, को स्वतंत्र तथा काकल्य व्यंजन भी कहा जाता हैं।
(2) सारे स्वर अल्पप्राण तथा सघोष होते है।
(3) मूल व्यंजनों की संख्या = 33(स्पर्श व्यंजन +अन्त्यस्थ व्यंजन + ऊष्म व्यंजन ) होती हैं।
(4) कुल व्यंजनों की = 39 (स्पर्श व्यंजन + अन्त्यस्थ व्यंजन + ऊष्म व्यंजन + संयुक्त व्यंजन +उत्क्षिप्त/ द्विगुण व्यंजन ) होती है।
(5) अ ं तथा अ: को संयुक्त रुप से आयोग-वाह कहते हैं।
यहाँ अ ं = अनुस्वार,
अ: = विशर्ग
(6) "र" को लुंठित व्यंजन के नाम से जाना जाता हैं।
(7) "ल" को पश्र्विक व्यंजन के नाम से जाता हैं।
(8) "स, र, ल," को वात्सर्य व्यंजन के नाम से जाना जाता हैं। क्योंकि इन्हे (दाँत + मसूड़े) से बोलै जाता हैं।
Note: -
1 = क, च, ट, त, प
2 = ख, छ, ठ, थ, फ
3 = ग, ज, ड, द, ब
4 = घ, झ, ढ, ध, भ
5 = ङ, ञ, ण, न, म
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Vyanjan PDF = व्यंजन.pdf
मुख्य रूप से व्यंजन 4 प्रकार के होते है -
(1) स्पर्श व्यंजन
(2) अन्त्यस्थ व्यंजन
(3) ऊष्म व्यंजन
(4) संयुक्त व्यंजन
(1) स्पर्श व्यंजन = स्पर्श व्यंजनो की संख्या 25 होती हैं -
(क-वर्ग) क , ख , ग , घ , ङ
(च-वर्ग) च , छ , ज , झ , ञ
(ट-वर्ग) ट , ठ , ड , ढ , ण
(त-वर्ग) त ,थ , द , ध , न
(प-वर्ग) प , फ , ब , भ , म
(2) अन्त्यस्थ व्यंजन = इनकी संख्या 4 होती है, तथा इनको बोलने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
य , व , र , ल
(3) ऊष्म व्यंजन = इनकी संख्या 4 होती है, तथा इनको बोलने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं।
श , ष , स , ह
(4) संयुक्त व्यंजन = इनकी संख्या 4 होती है।
श्र ,क्ष , त्र , ज्ञ
श्र = श् + र
क्ष = क् + ष
त्र = त् + र
ज्ञ = ज् + ञ
(5) उत्क्षिप्त / द्विगुण व्यंजन = ड़ , ढ़
स्थान बोले जाने वाले वर्ण
1 2 3 4 5
कंठ क , ख , ग , घ , ङ ह
तालव्य च , छ , ज , झ , ञ य
मूँह ट , ठ , ड , ढ , ण र श
दन्त त , थ , द , ध , न ल ष
होंठ प , फ , ब , भ , म व स
अघोष वर्ण = 1, 2, श, ष, स
सघोष वर्ण = 3, 4, 5, य, व, र, ल, ह
अल्पप्राण = 1, 3, 5, य, व, र, ल
महाप्राण = 2, 4, श, ष, स, ह
Note:-
(1) ह, को स्वतंत्र तथा काकल्य व्यंजन भी कहा जाता हैं।
(2) सारे स्वर अल्पप्राण तथा सघोष होते है।
(3) मूल व्यंजनों की संख्या = 33(स्पर्श व्यंजन +अन्त्यस्थ व्यंजन + ऊष्म व्यंजन ) होती हैं।
(4) कुल व्यंजनों की = 39 (स्पर्श व्यंजन + अन्त्यस्थ व्यंजन + ऊष्म व्यंजन + संयुक्त व्यंजन +उत्क्षिप्त/ द्विगुण व्यंजन ) होती है।
(5) अ ं तथा अ: को संयुक्त रुप से आयोग-वाह कहते हैं।
यहाँ अ ं = अनुस्वार,
अ: = विशर्ग
(6) "र" को लुंठित व्यंजन के नाम से जाना जाता हैं।
(7) "ल" को पश्र्विक व्यंजन के नाम से जाता हैं।
(8) "स, र, ल," को वात्सर्य व्यंजन के नाम से जाना जाता हैं। क्योंकि इन्हे (दाँत + मसूड़े) से बोलै जाता हैं।
Note: -
1 = क, च, ट, त, प
2 = ख, छ, ठ, थ, फ
3 = ग, ज, ड, द, ब
4 = घ, झ, ढ, ध, भ
5 = ङ, ञ, ण, न, म
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